TIRUKKURAL IN HINDI

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prasanna
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TIRUKKURAL IN HINDI

Post by prasanna » Tue Sep 02, 2008 8:00 am

अध्याय  107.   याचना-भय

1061


जो न छिपा कर, प्रेम से, करते दान यथेष्ट ।

उनसे भी नहिं माँगना, कोटि गुना है श्रेष्ठ ॥

1062


यदि विधि की करतार ने, भीख माँग नर खाय ।

मारा मारा फिर वही, नष्ट-भ्रष्ट हो जाय ॥

1063


‘निर्धनता के दुःख को, करें माँग कर दूर’ ।

इस विचार से क्रूरतर, और न है कुछ क्रूर ॥

1064


दारिदवश भी याचना, जिसे नहीं स्वीकार ।

भरने उसके पूर्ण-गुण, काफी नहिं संसार ॥

1065


पका माँड ही क्यों न हो, निर्मल नीर समान ।

खाने से श्रम से कमा, बढ़ कर मधुर न जान ॥

1066


यद्यपि माँगे गाय हित, पानी का ही दान ।

याचन से बदतर नहीं, जिह्वा को अपमान ॥

1067


याचक सबसे याचना, यही कि जो भर स्वाँग ।

याचन करने पर न दें, उनसे कभी न माँग ॥

1068


याचन रूपी नाव यदि, जो रक्षा बिन नग्न ।

गोपन की चट्टान से, टकराये तो भग्न ॥

    1069


दिल गलता है, ख्याल कर, याचन का बदहाल ।

गले बिना ही नष्ट हो, गोपन का कर ख्याल ॥

      1070


‘नहीं’ शब्द सुन जायगी, याचक जन की जान ।

गोपन करते मनुज के, कहाँ छिपेंगे प्राण ॥



अध्याय 108. नीचता


1071


हैं मनुष्य के सदृश ही, नीच लोग भी दृश्य ।

हमने तो देखा नहीं, ऐसा जो सादृश्य ॥

1072


चिन्ता धर्माधर्म की, नहीं हृदय के बीच ।

सो बढ़ कर धर्मज्ञ से, भाग्यवान हैं नीच ॥

1073


नीच लोग हैं देव सम, क्योंकि निरंकुश जीव ।

वे भी करते आचरण, मनमानी बिन सींव ॥

1074


मनमौजी ऐसा मिले, जो अपने से खर्व ।

तो उससे बढ़ खुद समझ, नीच करेगा गर्व ॥

1075


नीचों के आचार का, भय ही है आधार ।

भय बिन भी कुछ तो रहे, यदि हो लाभ-विचार ॥

1076


नीच मनुज ऐसा रहा, जैसा पिटता ढोल ।

स्वयं सुने जो भेद हैं, ढो अन्यों को खोल ॥

1077


गाल-तोड़ घूँसा बिना, जो फैलाये हाथ ।

झाडेंगे नहिं अधम जन, निज झूठा भी हाथ ॥

1078


सज्जन प्रार्थन मात्र से, देते हैं फल-दान ।

नीच निचोड़ों ईख सम, तो देते रस-पान ॥

     1079


खाते पीते पहनते, देख पराया तोष ।

छिद्रान्वेषण-चतुर जो, नीच निकाले दोष ॥

     1080


नीच लोग किस योग्य हों, आयेंगे क्या काम ।

संकट हो तो झट स्वयं, बिक कर बनें गुलाम ॥



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