TIRUKKURAL IN HINDI

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prasanna
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TIRUKKURAL IN HINDI

Post by prasanna » Wed Sep 17, 2008 10:50 am

अध्याय  131.   मान


1301


आलिंगन करना नहीं, ठहरो करके मान ।

देखें हम उनको ज़रा, सहते ताप अमान ॥

1302


ज्यों भोजन में नमक हो, प्रणय-कलह त्यों जान ।

ज़रा बढ़ाओ तो उसे, ज्यादा नमक समान ॥

1303


अगर मना कर ना मिलो, जो करती है मान ।

तो वह, दुखिया को यथा, देना दुख महान ॥

1304


उसे मनाया यदि नहीं, जो कर बैठी मान ।

सूखी वल्ली का यथा, मूल काटना जान ॥

1305


कुसुम-नेत्रयुत प्रियतमा, रूठे अगर यथेष्ट ।

शोभा देती सुजन को, जिनके गुण हैं श्रेष्ठ ॥

1306


प्रणय-कलह यदि नहिं हुआ, और न थोड़ा मान ।

कच्चा या अति पक्व सम, काम-भोग-फल जान ॥

1307


‘क्या न बढ़ेगा मिलन-सुख’, यों है शंका-भाव ।

प्रणय-कलह में इसलिये, रहता दुखद स्वभाव ॥

1308


‘पीड़ित है’ यों समझती, प्रिया नहीं रह जाय ।

तो सहने से वेदना, क्या ही फल हो जाय ॥

         1309


छाया के नीचे रहा, तो है सुमधुर नीर ।

प्रिय से हो तो मधुर है, प्रणय कलह-तासीर ॥

         1310


सूख गयी जो मान से, और रही बिन छोह ।

मिलनेच्छा उससे रहा, मेरे दिल का मोह ॥



अध्याय 132. मान की सूक्ष्मता


1311


सभी स्त्रियाँ सम भाव से, करतीं दृग से भोग ।

रे विट् तेरे वक्ष से, मैं न करूँ संयोग ॥

1312


हम बैठी थीं मान कर, छींक गये तब नाथ ।

यों विचार ‘चिर जीव’ कह, हम कर लेंगी बात ॥

1313


धरूँ डाल का फूल तो, यों होती नाराज़ ।

दर्शनार्थ औ’ नारि से, करते हैं यह साज ॥

1314


‘सब से बढ़’, मैंने कहा, ‘हम करते हैं प्यार’ ।

‘किस किस से’ कहती हुई, लगी रुठने यार ॥

1315


यों कहने पर- हम नहीं, ‘बिछुड़ेंगे इस जन्म’ ।

भर लायी दृग, सोच यह, क्या हो अगले जन्म ॥

1316


‘स्मरण किया’ मैंने कहा, तो क्यों बैठे भूल ।

यों कह मिले बिना रही, पकड़ मान का तूल ॥

1317


छींका तो, कह शुभ वचन, तभी बदल दी बात ।

‘कौन स्मरण कर छींक दी’, कह रोयी सविषाद ॥

1318


छींक दबाता मैं रहा, रोयी कह यह बैन ।

अपनी जो करती स्मरण, उसे छिपाते हैं न ॥

         1319


अगर मनाऊँ तो सही, यों कह होती रुष्ट ।

करते होंगे अन्य को, इसी तरह से तुष्ट ॥

         1320


देखूँ यदि मैं मुग्ध हो, यों कह करती रार ।

देख रहे हैं आप सब, दिल में किसे विचार ॥



अध्याय 133. मान का आनन्द

1321


यद्यपि उनकी भूल नहिं, उनका प्रणय-विधान ।

प्रेरित करता है मुझे, करने के हित मान ॥

1322


मान जनित लघु दुःख से, यद्यपि प्रिय का प्रेम ।

मुरझा जाता है ज़रा, फिर भी पाता क्षेम ॥

1323


मिट्‍टी-पानी मिलन सम, जिस प्रिय का संपर्क ।

उनसे होते कलह से, बढ़ कर है क्या स्वर्ग ॥

1324


मिलन साध्य कर, बिछुड़ने, देता नहिं जो मान ।

उससे आविर्भूत हो, हृत्स्फोटक सामान ॥

1325


यद्यपि प्रिय निर्दोष है, मृदुल प्रिया का स्कंध ।

छूट रहे जब मिलन से, तब है इक आनन्द ॥

1326


खाने से, खाया हुआ, पचना सुखकर जान ।

काम-भोग हित मिलन से, अधिक सुखद है मान ॥

1327


प्रणय-कलह में जो विजित, उसे रहा जय योग ।

वह तो जाना जायगा, जब होगा संयोग ॥

1328


स्वेद-जनक सुललाट पर, मिलन जन्य आनन्द ।

प्रणय-कलह कर क्या मिले, फिर वह हमें अमन्द ॥

         1329


रत्नाभरण सजी प्रिया, करे और भी मान ।

करें मनौती हम यथा, बढ़े रात्रि का मान ॥

        1330


रहा काम का मधुर रस, प्रणय-कलह अवगाह ।

फिर उसका है मधुर रस, मधुर मिलन सोत्साह ॥



P.S.  Dear readers,

     I just finished posting all the 1330 kurals of Tirukkural.in Hindi and English. I feel and trust many enjoyed  reading them,  whenever i post them. Thank U all viewers.I would like to get feed backs for this postings please. Let me know , Is there any readers , in Kannada or malayalam or Arabic or French for them  ?   so that I can post them for u


Warm Regards,
prasanna

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